जानिए क्यूँ भारत के सच्चे दोस्त इजराइल ने 1962 के युद्ध में भारत को नहीं करी थी मदद !!!
आज हम बात करने जा रहे है इजराइल और भारत के बीच अभी तक के रिश्ते की। जी, इस वक्त भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी इजराइल के 3 दिवसीय दौरे पर हैं। मोदी जी भारत के एक मात्र पहले प्रधानमंत्री हैं जो इजराइल के दौरे पर पहुंचे हैं | इस दौरे से भारतीय नागरिक जितने उत्साहित उससे कई ज्यादा उत्साहित इजराइल के नागरिक हैं जी हाँ और वैसे भी ये स्वाभाविक भी है क्योंकि अभी तक भारत के इतिहास के हर प्रधानमंत्री ने इजराइल जाने से परहेज़ किया था। शायद हो सकता है इजराइल के दौरे पर नहीं जाने के पीछे मुस्लिम समुदाय हो।
लेकिन बात यह ख़त्म नहीं होती है। अगर हम इतिहास के पने टटोल कर देखे तो एक बात आती है की अगर इजराइल भारत का इतना ही सच्चा दोस्त है तो 1962 में हुए भारत और चीन के मध्य युद्ध में क्यों इजराइल ने भारत की मदद करने से इंकार कर दिया। आज हम इसी पर बात करने जा रहे है की आखिर कर ऐसा क्या हुआ था की इजराइल ने मदद करने से इंकार कर दिया। हो सकता है आप इस बारे में जानकर चौंक जाएँगे !
1962 भारत-चीन युद्ध :-
भारत-चीन युद्ध भारत की पीठ में छुरा घोंपने जैसा था। आजादी के चंद सालो के बाद भारत की स्थिती युद्ध करने लायक नहीं थी। हालाँकि भारत युद्ध के मैदान में पहुंचा था। लेकिन वो युद्ध करने की स्थिति में नहीं था। उस दौरान जिन जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई में इजरायल गठन के विरोध में भारत ने 1950 में संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग की थी, उन्हीं नेहरू ने 1962 युद्ध के वक्त इजरायल से मदद मांगी। इजरायल मदद के लिए फौरन तैयार हो गया लेकिन नेहरू ने इजरायल के सामने एक शर्त रख दी।
शर्त कुछ ऐसी थी कि जिस समुद्री जहाज से हथियार भेजे जाएं, उस पर इजरायल का झंडा ना हो और दूसरे सभी हथियारों पर इजरायल की मार्किंग भी नहीं होनी चाहिए। इजरायल के पीएम को बगैर झंडे वाली बात से आपत्ति हुयी और इजरायल ने हथियार देने से इंकार कर दिया। बाद में इजरायल के झंडे लगे जहाज को भारत ने मंजूर कर लिया, इसके बाद इजरायली मदद भारत पहुंची।
1971 का युद्ध:-
1971 का युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में अमेरिका ने भारत के खिलाफ ही अपने सातवें बेड़े को भेज दिया लेकिन उस समय भी इजरायल ने एक सच्चे दोस्त की तरह भारत की मदद की। उसने गुपचुप तरीके से भारत को हथियार भेजे और उन्हें चलाने वाले लोग भी अमेरिकी पत्रकार गैरी बैस की किताब ‘द ब्लड टेलीग्राम’ में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव पी. एन हक्सर के दस्तावेजों के हवाले से इस बात की जानकारी दी है।
इस किताब में बताया गया कि ‘जुलाई 1971 में इजरायल की प्रधानमंत्री गोल्डा मायर ने गुप्त तरीके से एक इजरायली हथियार निर्माता से कहा कि वह भारत को कुछ मोर्टार और हथियार उपलब्ध कराए और साथ ही उन्हें चलाने का प्रशिक्षण देने वाले कुछ लोग भी दे। जब हक्सर ने समर्थन के लिए इजरायल पर जोर डाला तो गोल्डा मायर ने मदद जारी रखने का वादा किया.’ जाहिर है इजरायल ने हमेशा हर बुरी परिस्थिति में भारत से दोस्ती निभाई।
1999 करगिल युद्द:-
1999 में करगिल युद्ध तो नई पीढ़ी के जहन में अभी तक ताजा है। इस युद्ध के महज सात साल पहले ही इजराइल ने भारत से राजनयिक रिश्ते के तार जोड़े थे. लेकिन फिर भी इजरायल ने युद्ध में साथ देकर दोस्ती को निभाया ।
इस युद्ध के लिए इजरायल ने भारत को हेरॉन और सर्चर यूएवी दिए, जिनकी मदद से कारगिल की तस्वीरें ली गईं थीं। इजरायल ने भारत को मानवरहित विमान भी उपलब्ध कराए। इतना ही नहीं इजरायल ने सैटेलाइट से ली गई उन तस्वीरों को भी भारत से साझा किया, जिसमें दुश्मन के सैन्य ठिकाने दिख रहे थे।
इजरायल ने भारत को बोफोर्स तोप के लिए गोला बारूद उपस्थित कराये। इजरायल ने न सिर्फ थल सेना में सहायता की है बल्कि भारतीय वायु सेना को मिराज 2000 एच युद्धक विमानों के लिए लेजर गाइडेड मिसाइल भी उपलब्ध कराए। लेकिन हाँ एक बात है इजरायल ने भारत से कोई रक्षा समझौता नहीं किया फिर भी उस दौर में इजरायल ने भारत को हथियार दिये और अब इजरायल के साथ खुले तौर पर रक्षा संबंधों का दायरा इतना बड़ा हो चला है कि प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले ही रक्षा क्षेत्र में एकमुश्त कई बड़ी डील की तैयारी हो चुकी है। पीओके में आतंकियों के ट्रेनिंग कैंप को तबाह करने वाले मिसाइलों से लैस ड्रोन भारत को मिलने वाला है। अब भारत 17 हजार करोड़ की मिसाइल डील को मंजूरी दे चुका है।
source : dolphinpost
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