स्वामी हरिदास के जन्म को लेकर 2 मत है। पहले मत के अनुसार स्वामी जी वि० सं० 1569 में अलीगढ जिले के अंतर्गत हरिदास नामक ग्राम में उत्पन्न हुए थे। दूसरे मत के अनुसार स्वामी जी जन्म वि० सं०1537 में वृन्दावन से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित राजपुर ग्राम के एक सनाढ्य ब्राह्मण कुल में हुआ था। लेकिन इनके जन्म स्थान और गुरु के विषय में कई मत प्रचलित हैं। इन्हें ललिता सखी का अवतार माना जाता है।
श्री स्वामी हरिदास का विवाह एक परम सुंदरी ब्राह्मणी कन्या से हुआ परन्तु श्रीस्वामी हरिदास जी जिस दिव्य रस में मग्न थे, उसके समक्ष अन्य सब बंधन व्यर्थ थे। उनकी पत्नी जब हरिदास जी के दर्शन को आईं तभी दीपक की लौ से उनका शरीर छू गया और वे प्रकाश रुपी होकर श्री स्वामी जी के चरणों में विलीन हो गईं, यह एक बहुत खुबस घटना थी।
हरिदास स्वामी वैष्णव भक्त थे तथा उच्च कोटि के संगीतज्ञ भी थे। भक्त कवि, शास्त्रीय संगीतकार तथा कृष्णोपासक सखी संप्रदाय के प्रवर्तक थे। प्रसिद्ध गायक तानसेन इनके शिष्य थे। अकबर इनके दर्शन करने वृन्दावन गए थे।
केलिमाल में इनके सौ से अधिक पद संग्रहित हैं। स्वामी हरिदास जी की वाणी सरस और भावुक है। ये प्रेमी भक्त थे।
ऐसा माना जाता है की अकबर बादशाह स्वामी हरिदास के गाने सुनने के लिए साधु के वेश में तानसेन के साथ इनका गाना सुनने के लिए गया था। कहते हैं कि तानसेन इनके सामने गाने लगे और उन्होंने जानबूझकर गाने में कुछ भूल कर दी। इसपर स्वामी हरिदास ने उसी गाना को शुद्ध करके गाया। इस युक्ति से अकबर को इनका गाना सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो गया। पीछे अकबर ने बहुत कुछ पूजा चढ़ानी चाही पर इन्होंने स्वीकार नहीं की।
स्वामी हरिदास के उपास्य युगल राधा-कृष्ण ,नित्य-किशोर , एक वयस और अनादि एकरस हैं। यद्यपि ये स्वयं प्रेम-रूप हैं तथापि भक्त को प्रेम का आस्वादन कराने के लिए ये नाना प्रकार की लीलाओं का विधान करते हैं। इन लीलाओं का दर्शन एवं भावन करके जीव अखण्ड प्रेम का आस्वादन करता है।
8 comments