2019 के लोकसभा चुनाव आने वाले है लेकिन सरकार अभी भी नई नई योजनाए लागू करने में लगी हुई है और सोच रही है। जिनमे से कुछ लाभदायक भी होगी। सूत्रों के मुताबिक पता लगा है कि कर्ज माफ़ी या ऐसी ही कुछ रियायती कदम उठाएंगे अब, जिससे सरकार पर कर्ज और सरकारी खजाने को खाली करने का काम करेंगे। यह कदम जनता के लिए बहुत ही ज्यादा फायदेमंद होगा लेकिन इसी के साथ अगर हम सरकार के खजाने पर नजर डाले तो ऐसा लग रहा है कि देश को कर्जे में डूबा सकता है।
कहा जा रहा है कि वित्त मंत्रालयों के आकड़ो के अनुसार, सितम्बर 2018 तक के डाटा के हिसाब से केंद्र सरकार पर कुल मिला कर 82. 03 लाख करोड़ का कर्ज हो चूका है। बता दे कि अगर हम 2014 के आकड़े की बात करे तो आकड़ा 54. 90 लाख करोड़ का था। जिक्र एक पेपर के एडिशन में हुआ था कि साढ़े चार साल में सरकार की देनदारियों में 49 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। सूत्रों के मुताबिक पता लगा है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली बीमार है। कहा जा रहा है की उनके मंत्रालय की हालत भी अच्छी नहीं है।
खर्चे करने से राजकोषीय घाटा बढ़ जाता है…
2018 वित्त वर्ष के पहले आठ महीने में सरकार का राजकोषीय घाटा 7. 17 लाख करोड़ रहा जो तय टारगेट 6. 24 लाख करोड़ के 114 फीसदी से भी ज्यादा है। इसका मतलब यह है कि सरकार पहले ही अपनी तय सीमा से ज्यादा खर्च कर चुकी है। देश की आर्थिक हालत सुधारने के लिए मोदी सर्कार का राजकोषीय घाटा कम करने पर ख़ासा ज़ोर था।
राजकोषीय घाटा सरकार की कुल कमाई और खर्च के अंतर को कहा जाता है। इसी चीज़ से पता लगता है कि सरकार को कितनी उधारी की जरुरत है। ज्यादा खर्चे करने से राजकोषीय घाटा बढ़ जाता है।इस बात से सब वाकिफ है कि सरकार में आने से पहले नरेंद्र मोदी ने बहुत बड़े बड़े वादे किये थे। वित्त सचिव रहे अरविंद सुब्रमन्यन के नेतृत्व में बहुत प्रयास भी किए गए लेकिन बढ़ते कर्ज की ये हालत देखकर कुछ उपाय नहीं निकला।
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