सूत्रों के मुताबिक पता लगा है कि जैश के सरगना आतंकी मसूद अज़हर ने बालाकोट में तीन स्टार शीशमहल बना रखा है। इसी के साथ यह भी पता लगा है कि यहाँ कुल मिलाकर 600 आतंकी पांच से छः बड़ी बड़ी बिल्डिंग में रहते थे। सूत्रों के मुताबिक यह भी पता लगा है कि यहाँ पर हर तरह की छोटी बड़ी सुख सुविधाए मौजूद थी। यह आतंकी कैम्प एक तरह से किसी अय्याशगाह से कम नहीं था।
जैश का यह कैम्प पाकिस्तान के मानसेहरा नारन जलखांड रोड के पास में स्थित था। कहा जा रहा है कि यहाँ पर आतंकियों को मदरसा आयशा सादिक की आड़ में फिदायीन हमला करने की ट्रेनिंग दी जाती थी। जैश के कैम्प में शामिल होने के लिए सबसे पहला कदम होता था ब्रेनवाश करना। आतंकवादियों का ब्रेनवाश करके उनको आतंकी ट्रेनिंग में शामिल किया जाता था।
एक बहुत बड़ी छान बीन के बाद में इस आतंकी कैम्प का सारा राज भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसियों के पास है। इनका पूरा सिलसिला शुरू होता था मुज्जफराबाद से। यहाँ पर जैश का ऑफिस था सवाई नाला में, वहा पर सबसे पहले आतंकियों को छाटा जाता था। उसके बाद में उन आतंकवादियों के लिए इजाजतनामा तैयार किया जाता था।कहा जा रहा है कि अगर यह सब प्रोसेस सही से निपट जाते है तो मुजफ्फराबाद में मौजूद आतंकी कमांडर की साइन वाली चिठ्ठी दी जाती थी यानी की स्लिप।
इस चिट्ठी में “अल रहमत ट्रस्ट” का स्टैंप लगा होता था। जब यह स्टैम्प लगा होता था किसी की चिट्ठी में तो उसका यह मतलब होता था कि इस आतंकवादी की भर्ती जैश के कैम्प में हो चुकी है।सूत्रों के मुताबिक यह पता लगा है कि 6 एकड़ में फैले बालाकोट के इस फिदायीन फैक्ट्री में मुख्य ट्रेनिंग कैम्प मदरसे के पास था।
आत्मघाती हमले करने का अड्डा
कहा जा रहा है कि इस मदरसे के दो दरवाजे थे। इसमें दो बहुत ही अहम जगह थी। इसमें ऐसे एक तो था शीश महल और दूसरा था मस्कीन महल। पाकिस्तानी सेना और ISI यहां रहने वाले आतंकियों को थ्री स्टार सुविधा मुहैया कराती थी ताकि वो यहां से वापस न जा सकें। और हमेशा उन्ही के अंडर में रहे।ब्रेनवाश करने का काम आतंकी कमांडर और उसके साथ में मसूद अजहर और उसका भाई अब्दुल रऊफ करते थे। इस कैम्प में आतंकवादियों को हथियारों और गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग दिया करते थे। बालाकोट के इस कैंप में 50 आतंकी हर समय ट्रेनिंग लिया करते थे जिनमें से 20 से 25 आत्मघाती हमलावर होते थे।
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