पौराणिक समय से एक बहुत ही लोकप्रिय कथा प्रसिद्ध है उसके अनुसार एक शिकारी जंगल में शिकार करने जाता है। जब शिखर ढूंढते ढूंढते जब वह बहुत देर तक थक जाता है तो वह थोड़ी देर विश्राम करने के लिए बैठ जाता है। पेड़ की टहनियों के बीच में से धुप कभी आ रही थी तो कभी जा रही थी। इस वजह से वो सो नहीं पा रहा था। थोड़ी ही देर में वह एक बहुत ही सूंदर सा हंस आता है और अपने पंख खोलकर खड़ा हो जाता है ताकि शिखारी आराम से छाया में सो सके।
अब शिकारी की आँख लगी ही थी कि अचानक एक कौआ वहां पर आता है और उसी डाल पर बेथ जाता है जिसपे हंस बैठा हुआ था। उसके बाद में कौवे ने शिकारी के ऊपर मल किया और वह वहाँ से उड़ गया। इसके बाद शिकारी ने तुरंत धनुष निकाला और उस हंस पर अपना बाण चला दिया।जब हंस मर रहा था तब उसने शिकारी से कहा कि मैं तो बस आपकी सेवा कर रहा था, आपको छाव दे रहा था इसमें मेरा क्या दोष है।
इस बात पर शिकारी बहुत हँसा और बोला कि निश्चित तौर पर आपका दिल बहुत साफ है और आपने अपना काम पूरी तरह ईमानदारी से किया है लेकिन आपसे गलती तब हुई जब एक गलत इरादे का कौआ आपके पास आके बैठा तो आप वही रहे। आपको उसी समय वह से उड़ जाना चाहिए था क्योकि एक गलत सांगत आपकी बर्बादी का कारण बन सकती है। उस गलत सांगत के वजह से ही आप मृत्यु के द्वार पहुंचे हो।
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