जज लोया की मौत पर हाईकोर्ट के पूर्व जज को संदेह, बोले- सीडीआर खंगालें, सोहराबुद्दीन केस में रिहाई आदेश की जांच हो
इंडियन एक्सप्रेस की मयुरा जानवलकर और रूही भसीन ने जस्टिस (रिटायर्ड) अभय एम थिप्से का इंटरव्यू लिया है। जस्टिस थिप्से ने सख्त टिप्पणी करते हुए सोहराबुद्दीन मामले को न्यायतंत्र की विफलता भी करार दिया है।
गुजरात के चर्चित सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोपी डीआईजी डीजी बंजारा और अहमदाहबाद क्राइम ब्रांच के डीएसपी नरेंद्र के अमीन को जमानत देने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस अभय एम थिप्से ने जज बीएच लोया की मौत मामले में संदेह जताया है और सामान्य ज्ञान के विपरीत कुछ घटनाओं पर उंगली उठाई है। जस्टिस अभय एम थिप्से ने अपने रिटायरमेंट के लगभग सालभर बाद कहा है कि जज लोया की मौत के बाद उपजे हालात के मद्देनजर उन्होंने सोहराबुद्दीन केस में जज लोया और अन्य जजों द्वारा दिए गए फैसलों को दोबारा पढ़ा था और यह समझने की कोशिश की थी कि उसमें सबकुछ सामान्य है या कुछ असामान्य। इंडियन एक्सप्रेस से खास बातचीत में जस्टिस थिप्से ने कहा कि उन्हें इस मामले में कुछ गड़बड़ी नजर आई है जिस पर हाईकोर्ट को जांच के आदेश देने चाहिए। जस्टिस थिप्से ने सख्त टिप्पणी करते हुए सोहराबुद्दीन मामले को न्याय तंत्र की विफलता भी करार दिया है।
जस्टिस थिप्से ने कहा कि जज लोया की मौत के बाद उपजे विवादों के संदर्भ में उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस में एक खबर पढ़ी थी जिसमें गवाह अपने बयान से मुकर रहे थे। केस में बढ़ती उलझनों को देखकर ही उन्होंने सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ में दिए गए आदेशों को पढ़ा तो पाया कि उसमें कई असामान्य चीजें हैं। हालांकि, जस्टिस थिप्से ने जज लोया की मौत पर कोई टिप्पणी तो नहीं की लेकिन इतना जरूर कहा कि वह अप्राकृतिक था। इसके साथ ही जस्टिस थिप्से ने जज लोया की सीडीआर (फोन कॉल डिटेल्स रिपोर्ट) को देखा जाना चाहिए।
जज लोया को सीबीआई कोर्ट का स्पेशल जज बनाए जाने पर उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट में रजिस्ट्री नियुक्त होने पर आमतौर पर किसी को भी तीन साल से पहले नहीं हटाया जाता है, जबतक कि कोई स्पेशल वजह न हो लेकिन जज लोया को तीन साल का टर्म पूरा होने से पहले ही बॉम्बे हाईकोर्ट के रजिस्ट्री से हटाकर सीबीआई कोर्ट का स्पेशल जज बना दिया गया था। जस्टिस थिप्से ने कहा कि जज लोया की इस पद पर तैनाती से पहले जज जे टी उतपत को आनन-फानन में हटाया गया था। उन्होंने भी तीन साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया था। जस्टिस थिप्से के मुताबिक ऐसी विशेष परिस्थितियों में भी सुप्रीम कोर्ट को नहीं बताया गया था।
जब उनसे पूछा गया कि आपने क्यों और कैसे तय किया कि फर्जी मुठभेड़ केस में अपनी चुप्पी तोड़ें तो जस्टिस थिप्से ने कहा कि वो इस केस में असहज महसूस कर रहे थे क्योंकि 38 में से 15 आरोपियों को छोड़ा जा जुका था। उन्होंने कहा कि वो डीजी बंजारा को जमानत देने के इच्छुक नहीं थे लेकिन इसी केस में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें डीजी बंजारा को जमानत देना पड़ा था। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने सह आरोपी राजकुमार पांडियन और बी आर चौबे को जमानत दे दी थी। जस्टिस थिप्से ने कहा कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए इन्हें जमानत तो दे दी लेकिन अपने फैसले में लिखा था कि प्रथम द्रष्टया आरोपी के खिलाफ केस बनता है लेकिन निचली अदालत ने उस पर ध्यान नहीं दिया था। जस्टिस थिप्से ने सोहराबुद्दीन केस में इस बात पर भी आश्चर्य जताया कि अधिकांश आरोपियों ने बेल पिटीशन डालने के बाद कोर्ट में तत्परता नहीं दिखाई, वो उस पर इंतजार करते रहे जबकि 99 फीसदी केसों में ऐसा नहीं होता है। उऩ्होंने कहा कि बेल पिटीशन का पेंडिंग होना भी संदेह पैदा करता है।
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